ETA Variant : कितना खतरनाक है कर्नाटक में मिला कोरोना का नया वैरिएंट

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ETA Variant

नई दिल्ली : ETA Variant : देश में फैले Corona संकट के बीच मेंगलुरू में 5 अगस्त को कोरोना का ईटा वैरिएंट मिला है.

अब तक भारत में अल्फा और डेल्टा वैरिएंट ही हावी रहे हैं. ईटा वैरिएंट के मिलने से चिंता बढ़ गई है.

जानकारी है कि दुबई से आए एक व्यक्ति में ये वैरिएंट मिला है.

जिसके बाद से ही इस वैरिएंट ने चिंता बढ़ा दी कि क्या यह वैरिएंट तीसरी लहर का कारण बनेगी.

इससे पहले अप्रैल 2020 में भी निमहांस के वायरोलॉजी लैब ने ईटा वैरिएंट के दो केस मिलने का दावा किया था.

WHO ने इसे वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट (VoI) माना है. ईटा वैरिएंट के मिलने से सवाल खड़े हो गए हैं

कि ईटा वैरिएंट कितना खतरनाक है ? इसके खिलाफ वैक्सीन कितना कारगर होगी की नहीं.

ईटा वैरिएंट को लाइनेज B.1.525 भी कहा जाता है.

SARS-CoV-2 वायरस के ईटा वैरिएंट में E484K म्यूटेशन मौजूद है,

जो इससे पहले गामा, जीटा और बीटा वैरिएंट्स में मिला था.

अच्छी बात यह है कि अल्फा, बीटा, गामा में मौजूद N501Y म्यूटेशन इसमें नहीं हैं,

जो इन वैरिएंट्स को खतरनाक बनता है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक अल्फा वैरिएंट की तरह इसमें भी पोजिशन 69

और 70 पर अमीनो एसिड्स हिस्टिडिन और वैलाइन मौजूद नहीं है.

WHO ने इसे वैरिएंट ऑफ कंसर्न (VoC) की सूची में शामिल नहीं किया है.

यह अब भी वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट (VoI) बना हुआ है.

WHO का कहना है कि वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट कोरोना के ऐसे वैरिएंट हैं जो वायरस की ट्रांसमिशन,

गंभीर लक्षणों, इम्यूनिटी को चकमा देने, डायग्नोसिस से बचने की क्षमता दिखाते हैं.

VoI में शामिल वैरिएंट्स कई देशों में क्लस्टर में मौजूद हैं.

तुलनात्मक रूप से समय के साथ इसके केस बढ़ सकते हैं.

अमेरिका की CDC के मुताबिक ईटा वैरिएंट पर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ट्रीटमेंट का प्रभाव कम होता है.

साथ ही प्लाज्मा थैरेपी नाकाम रहती है.

WHO का कहना है कि ईटा वैरिएंट अन्य वैरिएंट्स से बिल्कुल ही अलग है. इ

सकी वजह है इसमें E484K और F888L म्यूटेशंस का होना.

ETA Variant : अब तक यह वायरस स्ट्रेन अल्फा और डेल्टा वैरिएंट की तरह बहुत ज्यादा इंफेक्शियस के तौर पर नहीं पहचाना गया है.

यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक ईटा वैरिएंट के शुरुआती केस यूनाइटेड किंगडम

और नाइजीरिया में दिसंबर 2020 में मिले थे.

देश की नामी वैक्सीन साइंटिस्ट और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज,

वेल्लोर की प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कंग के मुताबिक वायरस में म्यूटेशन कोई नई बात नहीं है.

यह स्पेलिंग मिस्टेक की तरह है.

वायरस लंबे समय तक जीवित रहने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इन्फेक्ट करने के लिए जीनोम में बदलाव करते हैं.

ऐसे ही बदलाव कोरोना वायरस में भी हो रहे हैं.

महामारी विशेषज्ञ डॉ. चंद्रकांत लहारिया के मुताबिक वायरस जितना ज्यादा मल्टीप्लाई होता है,

उसमें म्यूटेशन होते जाएंगे.

जीनोम में होने वाले बदलावों को ही म्यूटेशन कहते हैं.इससे नए और बदले रूप में वायरस सामने आता है,

जिसे वैरिएंट कहते हैं.

WHO की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि वायरस जितने समय तक हमारे बीच रहेगा,

उतने ही उसके गंभीर वैरिएंट्स सामने आने की आशंका बनी रहेगी.

अगर इस वायरस ने जानवरों को इन्फेक्ट किया

और ज्यादा खतरनाक वैरिएंट्स बनते चले गए तो इस महामारी को रोकना बहुत मुश्किल होने वाला है.

सभी वैरिएंट ज्यादा या कम खतरनाक हो सकता है.

यह इस बात पर डिपेंड करता है कि उसके जेनेटिक कोड में किस जगह म्यूटेशन हुआ है.

म्यूटेशन ही तय करता है कि कोई वैरिएंट कितना इंफेक्शियस है?

वह इम्यून सिस्टम को चकमा दे सकता है या नहीं? वह गंभीर लक्षणों की वजह बन सकता है या नहीं?

उदाहरण के लिए अल्फा वैरिएंट ओरिजिनल वायरस से 43% से 90% तक ज्यादा इंफेक्शियस है.

अल्फा वैरिएंट की वजह से गंभीर लक्षण भी दिखे और मौतें भी हुईं.

जब डेल्टा वैरिएंट सामने आया तो यह अल्फा वैरिएंट से भी ज्यादा इंफेक्शियस निकला.

अलग-अलग स्टडी में यह ओरिजिनल वायरस के मुकाबले 1000 गुना ज्यादा इंफेक्शियस मिला है.

सवाल यह है कि क्या इन वैरिएंट्स के खिलाफ वैक्सीन इफेक्टिव है?

ETA Variant : अब तक तो यह साबित हो चुका है कि अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा वैरिएंट्स के खिलाफ वैक्सीन इफेक्टिव है.

यह इफेक्टिवनेस अलग-अलग है.

कुछ स्टडीज में कहा गया है कि वैरिएंट्स से बचने के लिए दोनों डोज लेना जरूरी है.

खासकर भारत में लग रही कोवीशील्ड के तभी वह प्रभावी तरीके से डेल्टा

और अन्य वैरिएंट्स के खिलाफ प्रोटेक्शन की लेयर बनाता है.

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