Weather scientist कैसे मिली रामविलास पासवान को उपाधि ?

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Weather scientist पासवान 2004 के लोकसभा चुनाव के ऐन मौक़े पर जब पड़ोस में रह रहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उनके घर पैदल चलकर गईं तो उन्होंने फिर से UPA का हाथ थाम लिया.

पटना:LNN:Weather scientist बिहार की राजनीति के दिग्गज नेता रामविलास पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता था.

एक नहीं छह- वी पी सिंह, एचडी देवगौड़ा, आई के गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और अब नरेंद्र मोदी- प्रधान मंत्री की कैबिनेट में काम करने वाले रामविलास पासवान ने करीब बारह वर्षों तक,

बिहार और पूरे देश में गुजरात दंगों और उस समय गुजरात के मुख्य मंत्री और अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ जमकर प्रचार किया था.

Weather scientist उपाधि रामविलास पासवान पूर्व मुख्य मंत्री और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने दी थी.

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उन्हीं की सरकार में मंत्री भी बने. बिहार से लालू-राबड़ी को राज्य की सता से बाहर करने में भी उनकी अहम भूमिका रही है.

जब नीतीश कुमार ने लालू यादव के ख़िलाफ़ विद्रोह कर साल 1994 में समता पार्टी बनायी तो रामविलास पासवान लालू यादव के क़ब्ज़े में चली गयी जनता दल में ही रहे.

अगले साल 1995 में विधान सभा चुनावों में जब भारी बहुमत से लालू यादव की जीत हुई तो लोगों को समझ आ गया कि पासवान अपने उस फैसले पर सही थे.

उसके बाद जब लालू यादव ने चारा घोटाले में नाम आने पर 1997 में अपनी नई पार्टी (राजद) बना ली,

उसके बाद भी पासवान शरद यादव के साथ जनता दल में ही बने रहे और 1998 का लोक सभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

हालांकि, तब तक उन्हें आभास हो गया था कि अब उन्हें लालू या एनडीए में से किसी एक को चुनना होगा.

फिर जनता दल और समता पार्टी का विलय होकर जनता दल यूनाइटेड बनी और 1999 के लोक सभा चुनाव में लालू यादव को इस नए गठबंधन के सामने हार स्वीकार करनी पड़ी.

उस समय के लोक सभा सीटों में राष्ट्रीय जनता दल को मात्र सात सीटें मिली लेकिन अगले ही साल विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड में विभाजन हो गया

और लालू यादव कांग्रेस पार्टी की मदद से सरकार बनाने में क़ामयाब हो गए.

पासवान ने भी अपनी नई पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी बना ली.

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केंद्र में जो NDA की सरकार बनी थी उसमें रामविलास पासवान संचार मंत्री थे,

लेकिन कुछ कारणों से यह मंत्रालय उनसे दो वर्षों में छीन लिया गया और उन्हें कोयला मंत्रालय दे दिया गया जिससे वो काफ़ी नाराज़ थे.

तभी उन्होंने गुजरात दंगों को आधार बनाकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से इस्तीफ़ा दे दिया.

हालांकि, पासवान NDA में बने रहे और 2004 के लोकसभा चुनाव के ऐन मौक़े पर जब पड़ोस में रह रहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उनके घर पैदल चलकर गईं तो उन्होंने फिर से UPA का हाथ थाम लिया.

पासवान ने एक बार फिर बिहार में लालू यादव और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा

और पिछले लोकसभा चुनावों का परिणाम पलट डाला. इस बार नीतीश कुमार अपने परंपरागत बाढ़ सीट से भी हार गए.

केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो लालू यादव के कारण उन्हें रेल मंत्रालय नहीं मिल पाया.

इससे खफा पासवान ने लालू यादव से 2005 के विधानसभा चुनावों में दो-दो हाथ करने की ठान ली.

2005 के फरवरी में उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी अकेले बिहार विधान सभा चुनाव लड़ी.

यह पहली बार हुआ था कि जो लोग केंद्र में सहयोगी थे, वो राज्य में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे थे.

उनकी पार्टी को 29 सीटें आईं.

इसी कारण त्रिशंकु विधानसभा का परिणाम आया. राबड़ी देवी मुख्यमंत्री नहीं रहीं.

राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया.

कुछ ही महीनों के बाद लालू यादव के दबाव में जब विधानसभा को भंग करने का केंद्रीय कैबिनेट में फ़ैसला लिया गया, तब रामविलास पासवान उससे दूर रहे.

हालाँकि, 2005 के अक्टूबर- नवंबर में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में उन्हें मात्र 10 सीटों से ही संतोष करना पड़ा.

राज्य में नीतीश कुमार की सरकार बनी. इसमें लोक जनशक्ति पार्टी की एकला चलो रे की नीति की महत्वपूर्ण भूमिका रही.

हालाँकि, सत्ता में आने के साथ ही नीतीश कुमार ने दलितों में पासवान जाति के वर्चस्व के ख़िलाफ़ महादलित नाम का पासा फेंक दिया

और उनके लिए विकास के कार्यक्रम जब शुरू किए तो रामविलास पासवान इससे काफ़ी नाराज़ हुए.

पासवान एक बार फिर लालू यादव के साथ तालमेल करने पर मजबूर हो गए.

हालाँकि, इसका लाभ उन्हें राजनीतिक रूप से ख़ासकर चुनाव में नहीं मिला.

2009 का लोकसभा चुनाव वो हार गए. 2010 के विधानसभा चुनाव में लोजपा को मात्र तीन सीटें मिलीं.

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