Lt Governor vs Delhi Govt

Lt Governor vs Delhi Govt मामले में सुप्रीम कोर्ट से केजरीवाल सरकार को झटका देते हुए कहा है कि ACB,सर्विसेस, और जांच आयोग पर केंद्र का अधिकार

नई दिल्ली:LNN: Lt Governor vs Delhi Govt के बीच अधिकारों को लेकर चले आ रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है,

हालांकि सर्विसेज के मामले में बेंच के दोनों जजों में मतभेद होने की वजह से यह मामला बड़ी बेंच को भेज दिया गया है.

Lt Governor vs Delhi Govt मामले में एक नवंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और केंद्र की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.

पूर्व की सुनवाई के दौरान केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि उप राज्यपाल (LG) के पास दिल्ली में सेवाओं को विनियमित करने की शक्ति है.

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल (LG) मामले में गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया है.

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जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने कहा है कि कमिशन ऑफ इन्क्वायरी ऐक्ट के तहत अधिकार LG के पास रहेंगे.

दिल्ली सरकार जांच आयोग का गठन नहीं कर सकती है. हालांकि सीएम सरकारी वकील की नियुक्ति कर सकते हैं.

जस्टिस सीकरी ने कहा कि ग्रेड-1 और ग्रेड-2 के अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग के मामले केंद्र के पास रहेंगे यानी इस पर LG का अधिकार होगा.

वहीं ग्रेड-3 और 4 के अधिकारियों का ट्रांसफर और पोस्टिंग दिल्ली सरकार कर सकेगी.

हालांकि Lt Governor vs Delhi Govt मामले में जस्टिस भूषण का राय अलग थी इसलिए मामला बड़ी बेंच को भेज दिया गया है.

बिजली बोर्ड से जुड़े कार्य दिल्ली सरकार को सौंपे गए हैं.

दिल्ली सरकार बिजली विभाग के कर्मचारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग भी कर सकती है और बिजली के दाम निर्धारित कर सकती है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि जमीनों का सर्कल रेट दिल्ली सरकार तय करेगी.

दिल्ली सरकार ही मुआवजे का निर्धारण भी करेगी.

जमीन से जुड़े अन्य मामले भी सीएम ऑफिस के नियंत्रण में होंगे

हालांकि रेवेन्यू पर सरकार को एलजी की सहमति लेनी होगी.

ACB का अधिकार भी केंद्र को दिया गया है.

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दिल्ली विशेष स्थिति वाला राज्य है.

और यहां की पुलिस केंद्र के अधीन है इसलिए भ्रष्टाचार की जांच के मामले भी एलजी के अधीन ही होंगे.

दोनों जजों ने कहा कि रेवेन्यू या ट्रांसफर, पोस्टिंग के मामले में Lt Governor vs Delhi Govt के बीच अगर कोई मतभेद होता है तो मामले राष्ट्रपति के पास जाएगा.

राष्ट्रपति ने अपनी शक्तियों को दिल्ली के प्रशासक को सौंप दिया है और सेवाओं को उसके माध्यम से प्रशासित किया जा सकता है.

पांच जजों की संविधान पीठ ने 4 जुलाई को राष्ट्रीय राजधानी के शासन के लिए व्यापक मापदंडों को निर्धारित किया था.

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ऐतिहासिक फैसले में इसने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता.

लेकिन उप राज्यपाल (एलजी) की शक्तियों को यह कहते हुए अलग कर दिया गया कि उसके पास “स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति” नहीं है.

एलजी को चुनी हुई सरकार की सहायता और सलाह पर कार्य करना है

19 सितंबर को केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि दिल्ली के प्रशासन को दिल्ली सरकार के पास अकेला नहीं छोड़ा जा सकता.

क्योंकि देश की राजधानी होने के नाते इसकी “असाधारण” स्थिति है.

केंद्र ने अदालत से कहा था कि शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है.

केंद्र ने कहा था कि क्या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) के पास सेवाओं’ को लेकर विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं या नहीं.

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